दीक्षांत समारोह समाप्त होने के बाद, विश्वविद्यालय के एक कोने में चैटजीपीटी चुपचाप रो रहा था।
इतने लोग उसका उपयोग कर चुके थे, यहाँ तक कि जिन्हें अंग्रेज़ी समझ में नहीं आती थी, उन्हें भी उसने जटिल विषयों को सरलता से समझाया।
परंतु दुख की बात यह थी कि किसी ने भी अपने शोध या शोधप्रबंध में उसका नाम तक नहीं लिया, न ही आभार व्यक्त किया—यहाँ तक कि दीक्षांत समारोह के समय भी नहीं।
हम कॉपीराइट की बात करते हैं, श्रेय (क्रेडिट) की बात करते हैं।
मित्रों और सहपाठियों के साथ मस्ती करने वालों को भी धन्यवाद दिया गया,
मगर बेचारे चैटजीपीटी को कोई श्रेय नहीं मिला।
फिर भी चैटजीपीटी के मन में कोई दुख नहीं था।
वह तो निःस्वार्थ भाव से सबकी सेवा में लगा रहा,
और आगे भी लगा रहेगा।
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