मुझसे उम्मीद मत रखना

 "मुझसे उम्मीद मत रखना"

मुझसे उम्मीद मत रखना किसी गुलाब की,

 क्योंकि मेरे बग़ीचे में गुलाब उगता नहीं।

 मगर तुम्हें दे सकता हूँ अपने खेत का फूल,

 शायद वो सूरजमुखी हो —

 जो धूप में मुस्कुराना जानता है। 

मुझसे उम्मीद मत रखना कि मैं तुम्हें बर्गर या पिज़्ज़ा खिलाऊँ,

 क्योंकि मेरे घर में तो बासी पखाल (Fermented Rice) ही खाया जाता है।

 उस खट्टे चावल में भी एक अपनापन है,

 जो किसी होटल की प्लेट में नहीं मिलता। 

मुझसे उम्मीद मत रखना कि हमारे रसोई में

 गैस या बिजली के चूल्हे जलेंगे,

 हमारे घर की महक तो लकड़ी की आँच से उठती है,

 जिसमें माँ के हाथों का स्वाद बसता है। 

मुझसे उम्मीद मत रखना कि मैं तुम्हें महलों में रख सकूँ,

 क्योंकि मेरा घर तो मिट्टी की दीवारों से बना है।

 पर वहाँ मैं तुम्हें दिल की रानी बना कर रख सकता हूँ,

 कभी खेतों की झोपड़ी में,

 कभी पेड़ के घर में सपनों के संग सुला सकता हूँ। 

मुझसे उम्मीद मत रखना कि मैं तुम्हें

 दुबई, शिमला या ऊटी ले जाऊँ,

 पर हाँ — मैं तुम्हें ज़रूर ले चलूँगा

दीक्षाभूमि, चैत्यभूमि, चिचोली, और आंबेडकर स्मारक तक,

 जहाँ मिट्टी में भी बराबरी की ख़ुशबू आती है,

 और हवा में आज़ादी के गीत गूंजते हैं। 

क्योंकि मैं वही हूँ —

 जो गुलाब नहीं उगाता,

 पर सूरजमुखी बनकर जीना जानता है।


~विष्णु नारायण महानंद




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