"बस यूँ ही चल रहा है"

 कहानी: "बस यूँ ही चल रहा है"

एक लड़का है। वह एक छोटे से गाँव से आता है। उसके सपनों में बड़ा शहर था, बड़ी इमारतें, बड़ा कॉलेज और एक अच्छा भविष्य। पर जब वह सच में शहर के एक नामी कॉलेज में पहुँचता है, तो उसे सबसे पहला सामना करना पड़ता है भाषा से।

कक्षा में शिक्षक जैसे तेज़ बहती नदी की तरह अंग्रेज़ी में बोलते हैं। दोस्त भी ज़्यादातर अंग्रेज़ी माध्यम से आए हुए। लड़का सुनता है, बैठा रहता है, सिर हिलाता है… पर समझ बहुत कम आता है। वह बोल भी नहीं पाता। शब्द जीभ पर आते ही अटक जाते हैं।

वह हार नहीं मानता। दोस्त से पूछता है। अपनी धीमी गति से, अपनी समझ के अनुसार, धीरे-धीरे किताबें पढ़ता है। रात में देर तक जागता है। पर जो सीखता है, वह सब अस्थायी होता है—कुछ देर बाद दिमाग से फिसल जाता है। जैसे रेगिस्तान में पानी का एक छोटा सा पोखर—धूप पड़ते ही गायब।

परीक्षा आती है। वह बैठता है, पसीना आता है, दिमाग खाली। वह हार जाता है। एक बार नहीं, कई बार।

उधर शिक्षक परेशान हो जाते हैं।
वे पूछते हैं—
“बेटा, बाकी परीक्षाओं में कैसे कर लेते हो? यहाँ क्या दिक्कत है?”

लड़का शांत चेहरा रखकर बस इतना कह पाता है—
“मुझे भी नहीं पता, सर… जो पढ़ाया जा रहा है, समझने की कोशिश तो करता हूँ, पर दिमाग में टिकता नहीं। कोशिश कर रहा हूँ… बस… बस ऐसे ही चल रहा है…”

शिक्षक और लड़का दोनों ही थक जाते हैं।
मगर कोई भी दोषी नहीं है।
दोषी है वह दूरी
भाषा की, पृष्ठभूमि की, व्यवस्था की।

और सच में, जीवन ऐसे ही चल रहा है…
हाँ, बस यूँ ही चल रहा है।

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