"तुम्हारे शहर जाने का मन क्यों कर रहा है आज?"
-विष्णु
आज न जाने क्यों...
मन कर रहा है तुम्हारे शहर जाने का।
कितना सुंदर है न... तुम्हारा शहर?
और उस शहर से भी कितना सुंदर हो तुम।
तुमसे भी ज़्यादा सुंदर —
तुम्हारा प्यार,
तुम्हारी मुस्कान,
तुम्हारा ह्रदय,
और तुम्हारी वो दो मासूम सी आँखें।
पर शायद...
तुम्हारा शहर मुझे पसंद नहीं करता।
फिर भी...
मन करता है जाने का।
क्योंकि वहाँ मेरे दादा-दादी रहते हैं।
पिछले साल गया था मैं...
बारिश में भीगते-भीगते उनके साथ तस्वीरें खिंचवाई थीं।
कितना सुकून मिलता था
जब उनकी छाँव में बैठ जाता था।
फुलेवाड़ा —
जहाँ प्यार है,
जहाँ मोहब्बत है,
जहाँ शिक्षा है।
शिक्षा के लिए ही तो फुले को
उमसाँ और फ़ातिमा ने
कितनी सहायता दी थी —
इतने प्रतिबंधों के बावजूद भी!
इस बार जब जाऊँगा...
तो तुम्हें भी वहाँ ले जाऊँगा।
मेरे दादा-दादी की दी हुई
शिक्षा की मशाल
हमें विरासत में मिली है।
हम उसे लेकर आगे बढ़ेंगे।
लेकिन... पता नहीं...
क्या तुम्हारी सहमति होगी?
