"लोकशाही और जाति का सच"

 

"लोकशाही और जाति का सच"

— विष्णु

आज...
महिलाओं के कंधों पर सितारे हैं।
महिलाएं पंख फैलाकर
नीले अम्बर में उड़ रही हैं।

और दूसरी तरफ...
कहीं शादी टूट जाती है,
किसी की जाति पर संदेह उठता है।
उन्हें सहनी पड़ती है मानसिक प्रताड़ना।

क्यों?

क्योंकि उनके घर की दीवारों पर टंगी है
बाबासाहेब की तस्वीर।

क्योंकि उनकी मेज पर रखी है
एक किताब — जिसके ऊपर लिखा है "दलित साहित्य"।

क्योंकि उनके मोबाइल में बजती है
कड़ूबाई खरात की भीमगीतों वाली कॉलर ट्यून।

इधर...
भारत की महिलाएं
राष्ट्र की सर्वोच्च कुर्सियों पर पहुँच चुकी हैं।

तो उधर...
गाँव की पंचायतों में
अब भी आसनियों पर विराजमान हैं
तथाकथित पंचों के स्वामी।

आज भी रोकी जाती हैं महिलाएं —
शिक्षा को पंख बनाकर उड़ने की ख्वाहिश से।

आज भी राष्ट्र मना रहा है
"लोकशाही का 76वाँ पर्व"।

लेकिन...
जातिवाद मिटा नहीं।

क्या ये लोकशाही सच में है — जनता के लिए?
या बस कुछ "चुने हुए" लोगों के लिए?

जहाँ...
दलित मारे जाते हैं सेप्टिक टैंक में,
दलित छात्र आत्महत्या कर लेते हैं विश्वविद्यालयों में,
दलित-आदिवासियों को उजाड़ा जाता है उनकी ज़मीन से,
दलित महिलाएं बलात्कार और हत्या की शिकार होती हैं।

जहाँ...
जनता से चुने नेता की जेबें हर साल भरती जाती हैं,
और जनता की जेब... हर साल खाली होती जाती है।


"दुनिया की सबसे बड़ी लोकशाही के इस पर्व पर,
जनता को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।"

— विष्णु


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