तुम लौट के आना

 


तुम लौट के आना

(विष्णु, 26/02/2025)

तुम लौट के आना,
चाँद से उतर कर।
नर्मदा के किनारे तुम्हें मिलना है,
तुम लौट आना —
समंदर से नर्मदा बन कर।

आज भी गाँव में अँधेरा है,
तुम लौट के आना —
शिक्षा की रौशनी लेकर।

आज AI का युग है,
कविताएँ हैं, कहानियाँ हैं बहुत सारी,
मगर तुम्हारी आवाज़ में सुनना है इन्हें।
तुम लौट के आना —
अनेक कविताएँ, अनेक कहानियाँ लेकर।

रिमोट में व्यवस्था तो है,
मगर व्यवस्थित नहीं है।
तुम लौट के आना —
एक क्रांति की मशाल बन कर।

यहाँ दो मज़हबों में, जातियों में
विद्रोह की चिंगारियाँ हैं।
तुम लौट के आना —
एक मोहब्बत और समता की शिक्षिका बन कर।

यहाँ गरीब लुटे जा रहे हैं,
महिलाएँ शोषित हो रही हैं,
अधिकारियों के झूठे वादों में अनपढ़ उलझ रहे हैं।
तुम लौट के आना —
काली कोट में, कलम लेकर।

नन्हे-मुन्नों के लिए बगीचा बनाएँगे,
जहाँ सपनों की खुशबू हो,
तुम लौट के आना —
हमारा साथ देना।

बस, तुम लौट के आना।

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