"एक अधूरी ख़्वाहिश..."

 


"एक अधूरी ख़्वाहिश..."

~ विष्णु नारायण महानंद

सबको पता है... क्या होता है इस उम्र में।

ना poetry है

ना शायरी है...

बस... कुछ उलझे हुए से अल्फ़ाज़।

कभी Insta, कभी Whatsapp...
कभी बेवजह की उदासियां,

कभी अनकही सी ख्वाहिशें ।

(रुककर... धीमे से)

नवल जी ने मुस्कुराकर पूछा था मुझसे —
"तू हम से दूर क्यों रहने लगा?

कभी अपनी की धड़कन बन गया क्या?"

(हल्की मुस्कान के साथ)
मैं भी मुस्कुराया...
और बोला...
"किसी ने कभी अपनी धड़कन बनाने लायक ही नहीं समझा मुझे..."

(रुककर... गहरी सांस...)

एक ख्वाहिश है मेरी —
इस दुनिया को छोड़ने से पहले,
अगर कभी जिंदगी के सफर में Accident हो जाए...

तो... please...
मिट्टी में मत गाड़ देना मुझे।

किसी Hospital को donate कर देना,
शायद किसी अनजाने के सीने में
धड़कन बनकर धड़क जाऊँ।

(धीमी आवाज़ में समाप्त...)
"क्योंकि किसी की धड़कन बनने का हक़...
ज़िंदगी ने शायद मुझसे छीन लिया था..."


Note: नवल जी मेरे क्लासमेट है। वे शायरी करते रहते है।

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